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Question Numbers: 121-128
निर्देश - गद्यांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प चुनिए-
भारतीय रंगमंच अपने मूल में, संबद्ध विचारों में और अपने विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। इसका मूल उद्गम ऋग्वेद की उन ऋचाओं और संवादों में खोजा जा सकता है जिनमें एक हद तक नाटकीयता है। रामायण और महाभारत में नाटकों का उल्लेख मिलता है कृष्ण-लीला से संबंधित गीत, संगीत और नृत्य में इसने आकार ग्रहण करना आरंभ कर दिया था। ई. पूर्व छठी या सातवीं शताब्दी के महान वैयाकरण पाणिनि ने कुछ नाट्य-रूपों का उल्लेख किया है। रंगमंच की कला पर रचित नाट्यशास्त्र को ईसा की तीसरी शताब्दी की रचना कहा जाता है। ऐसे ग्रन्थ की रचना तभी हो सकती थी, जब नाट्य कला पूरी तरह विकसित हो चुकी हो और नाटकों की सार्वजनिक प्रस्तुति आम बात हो!
अब तक मिले संस्कृत नाटकों में प्राचीनतम नाटक अश्वघोष के हैं। वह ईसवी सन् के आरंभ के ठीक पहले या बाद में हुआ था। ये ताड़-पात्र पर लिखित पांडुलिपियों के अंश मात्र हैं और आश्चर्य की बात यह है कि ये गोबी रेगिस्तान की सरहदों पर तूफान में मिले हैं। अश्वघोष धर्मपरायण बौद्ध हुआ। उसने बुद्धरचित नाम से बुद्ध की जीवनी लिखी। यह ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हुआ और बहुत समय पहले भारत, चीन और तिब्बत में बहुत लोकप्रिय हुआ। यूरोप को प्राचीन भारतीय नाटक के बारे में पहली जानकारी 1789 ई में तब हुई जब कालिदास के शकुन्तला का सर विलियम जोन्स कृत अनुवाद प्रकाशित हुआ। सर विलियम जोंस के अनुवाद के आधार पर जर्मन, फ्रेंच, डेनिश और इटालियन में भी इसके अनुवाद हुए। गेटे पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने शकुन्तला की अत्यधिक प्रशंसा की।
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भारतीय रंगमंच अपने मूल में, संबद्ध विचारों में और अपने विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। इसका मूल उद्गम ऋग्वेद की उन ऋचाओं और संवादों में खोजा जा सकता है जिनमें एक हद तक नाटकीयता है। रामायण और महाभारत में नाटकों का उल्लेख मिलता है कृष्ण-लीला से संबंधित गीत, संगीत और नृत्य में इसने आकार ग्रहण करना आरंभ कर दिया था। ई. पूर्व छठी या सातवीं शताब्दी के महान वैयाकरण पाणिनि ने कुछ नाट्य-रूपों का उल्लेख किया है। रंगमंच की कला पर रचित नाट्यशास्त्र को ईसा की तीसरी शताब्दी की रचना कहा जाता है। ऐसे ग्रन्थ की रचना तभी हो सकती थी, जब नाट्य कला पूरी तरह विकसित हो चुकी हो और नाटकों की सार्वजनिक प्रस्तुति आम बात हो!
अब तक मिले संस्कृत नाटकों में प्राचीनतम नाटक अश्वघोष के हैं। वह ईसवी सन् के आरंभ के ठीक पहले या बाद में हुआ था। ये ताड़-पात्र पर लिखित पांडुलिपियों के अंश मात्र हैं और आश्चर्य की बात यह है कि ये गोबी रेगिस्तान की सरहदों पर तूफान में मिले हैं। अश्वघोष धर्मपरायण बौद्ध हुआ। उसने बुद्धरचित नाम से बुद्ध की जीवनी लिखी। यह ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हुआ और बहुत समय पहले भारत, चीन और तिब्बत में बहुत लोकप्रिय हुआ। यूरोप को प्राचीन भारतीय नाटक के बारे में पहली जानकारी 1789 ई में तब हुई जब कालिदास के शकुन्तला का सर विलियम जोन्स कृत अनुवाद प्रकाशित हुआ। सर विलियम जोंस के अनुवाद के आधार पर जर्मन, फ्रेंच, डेनिश और इटालियन में भी इसके अनुवाद हुए। गेटे पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने शकुन्तला की अत्यधिक प्रशंसा की।
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