Show Para
निर्देश (प्र.सं. 121 से 127) : नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
हेंवल घाटी के गाँववासियों ने चीड़ के पेड़ों के हो रहे विनाश के विरुद्ध जुलूस निकाले । घास-चारा लेने जा रही महिलाओं ने इन पेड़ों से लीसाटपकाने के लिए लगाए गए लोहे निकाल दिए व उनके स्थान पर मिट्टी की मरहम-पट्टी कर दी। महिलाओं ने पेड़ों का |रक्षा-बंधन भी किया आरंभ से ही लगा कि वृक्ष बचाने में महिलाएँ आगे आएँगी। वन कटने का सबसे अधिक कष्ट उन्हीं को उठाना पड़ता है, क्योंकि घास-चारा लाने के लिए उन्हें और दूर जाना पड़ता है। कठिन स्थानों से घास-चारा एकत्र करने में कई बार उन्हें बहुत चोट लग जाती है। वैसे भी पहाड़ी रास्तों पर घास-चारे का बोझ लेकर पाँच-दस कि.मी. या उससे भी ज्यादाचलना बहुत कठिन हो जाता है। इस आंदोलन की बात ऊचे अधिकारियों तक पहुँची तो उन्हें लीसा प्राप्त करने के तौर-तरीकों की जाँच करवानी पड़ी। जाँच से स्पष्ट हो गया कि बहुत अधिक लीसा निकालने के लालच में चीड़ के पेड़ों को बहुत नुकसान हुआ है। इन अनुचित तरीकों पर रोक लागी। चीड़ के घायल पेड़ों को आराम मिला, एक नया जीवन मिला। पर तभी खबर मिली कि इस इलाके के बहुत से पेड़ों को कटाई के लिए नीलाम किया जा रहा है। लोगों ने पहले तो अधिकारियों को ज्ञापन दिया कि जहाँ पहले से ही घास-चारे कासंकट है, वहाँ और व्यापारिक कटान न किया जाए। जब अधिकारियों ने गाँववासियों की माँग पर ध्यान न देते हुए नरेंद्रनगर में नीलामी की घोषणा कर दी, तो गाँववासी जुलूस बनाकर वहाँ नीलामी का विरोध करते हुए पहुँच गए। वहाँ एकत्र ठेकेदारों से हेंवल घाटी की महिलाओं ने कहा, "आप इन पेड़ों को काटकर हमारी रोजी-रोटी मत छीनो।पेड़ कटने से यहाँ बाढ़ व भू-स्खलन का खतरा भी बढ़ जाएगा।" कु ठेकेदारों ने तो वास्तव में वह बात मानी पर कुछ अन्य ठेकेदारों ने अद्वानी और सलेत के जंगल खरीद लिए।
Language-II : Hindi
निर्देश (प्र.सं. 121 से 127) : नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
हेंवल घाटी के गाँववासियों ने चीड़ के पेड़ों के हो रहे विनाश के विरुद्ध जुलूस निकाले । घास-चारा लेने जा रही महिलाओं ने इन पेड़ों से लीसाटपकाने के लिए लगाए गए लोहे निकाल दिए व उनके स्थान पर मिट्टी की मरहम-पट्टी कर दी। महिलाओं ने पेड़ों का |रक्षा-बंधन भी किया आरंभ से ही लगा कि वृक्ष बचाने में महिलाएँ आगे आएँगी। वन कटने का सबसे अधिक कष्ट उन्हीं को उठाना पड़ता है, क्योंकि घास-चारा लाने के लिए उन्हें और दूर जाना पड़ता है। कठिन स्थानों से घास-चारा एकत्र करने में कई बार उन्हें बहुत चोट लग जाती है। वैसे भी पहाड़ी रास्तों पर घास-चारे का बोझ लेकर पाँच-दस कि.मी. या उससे भी ज्यादाचलना बहुत कठिन हो जाता है। इस आंदोलन की बात ऊचे अधिकारियों तक पहुँची तो उन्हें लीसा प्राप्त करने के तौर-तरीकों की जाँच करवानी पड़ी। जाँच से स्पष्ट हो गया कि बहुत अधिक लीसा निकालने के लालच में चीड़ के पेड़ों को बहुत नुकसान हुआ है। इन अनुचित तरीकों पर रोक लागी। चीड़ के घायल पेड़ों को आराम मिला, एक नया जीवन मिला। पर तभी खबर मिली कि इस इलाके के बहुत से पेड़ों को कटाई के लिए नीलाम किया जा रहा है। लोगों ने पहले तो अधिकारियों को ज्ञापन दिया कि जहाँ पहले से ही घास-चारे कासंकट है, वहाँ और व्यापारिक कटान न किया जाए। जब अधिकारियों ने गाँववासियों की माँग पर ध्यान न देते हुए नरेंद्रनगर में नीलामी की घोषणा कर दी, तो गाँववासी जुलूस बनाकर वहाँ नीलामी का विरोध करते हुए पहुँच गए। वहाँ एकत्र ठेकेदारों से हेंवल घाटी की महिलाओं ने कहा, "आप इन पेड़ों को काटकर हमारी रोजी-रोटी मत छीनो।पेड़ कटने से यहाँ बाढ़ व भू-स्खलन का खतरा भी बढ़ जाएगा।" कु ठेकेदारों ने तो वास्तव में वह बात मानी पर कुछ अन्य ठेकेदारों ने अद्वानी और सलेत के जंगल खरीद लिए।
© examsnet.com
Question : 121
Total: 150
Go to Question: