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Question Numbers: 121-128
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
1) प्रणाम का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। यह अपने से बड़ों - श्रद्धेय तथा आदरणीय जनों के प्रति आत्मीयता का प्रतीक है। माता-पिता के अतिरिक्त समाज के सभी वृद्धजनों, गुरुजनों, अतिथियों, साधु-संतों को अपनी परम्परा के अनुसार प्रणाम करना मानव-धर्म है। वस्तुतः प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीजमंत्र है। प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि 'वृद्धजनों व माता-पिता को जो नित्य सेवा-प्रणाम से प्रसन्न रखता है, उसकी आयु-विद्या-यश और बल चारों की वृद्धि होती है। प्रणाम के बल पर ही बालक मार्कंडेय ने सप्तऋषियों से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया था। महाभारत के युद्ध के आरम्भ में युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म, गुरुद्रोण, कुलगुरू कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके उनसे 'विजयी भव' का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रणाम की महत्ता निरूपित करते हुए संत तुलसी कहते हैं कि ‘वह मानव-शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों और गुरुजनों के सम्मुख नहीं झुकता।''
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
1) प्रणाम का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। यह अपने से बड़ों - श्रद्धेय तथा आदरणीय जनों के प्रति आत्मीयता का प्रतीक है। माता-पिता के अतिरिक्त समाज के सभी वृद्धजनों, गुरुजनों, अतिथियों, साधु-संतों को अपनी परम्परा के अनुसार प्रणाम करना मानव-धर्म है। वस्तुतः प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीजमंत्र है। प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि 'वृद्धजनों व माता-पिता को जो नित्य सेवा-प्रणाम से प्रसन्न रखता है, उसकी आयु-विद्या-यश और बल चारों की वृद्धि होती है। प्रणाम के बल पर ही बालक मार्कंडेय ने सप्तऋषियों से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया था। महाभारत के युद्ध के आरम्भ में युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म, गुरुद्रोण, कुलगुरू कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके उनसे 'विजयी भव' का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रणाम की महत्ता निरूपित करते हुए संत तुलसी कहते हैं कि ‘वह मानव-शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों और गुरुजनों के सम्मुख नहीं झुकता।''
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