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न अवरोध कोई, न बाधा कही है
न संदेह कोई, न व्यवधान कोई
बहुत दूर से हैं दिशाएँ बुलातीं
नहीं पथ-डगर आज अनजान कोई
दिशाएँ निमंत्रणमुझे दे रही हैं, दिगंतर खुला सिर्फ मेरे लिए है।
नहीं कुछ यहाँ राह जो रोक पाए
न कोई यहाँ जो मुझे टोक पाए
अजानी हवा में उड़ा जा रहा हूँ
विजय गीत मेरा गगन मस्त गाए
हृदय में कहीं कह रहा बात कोई, धरा और गगन सिर्फ तेरे लिए है।
निर्देश (प्र. सं. 115 से 120) : निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
न अवरोध कोई, न बाधा कही है
न संदेह कोई, न व्यवधान कोई
बहुत दूर से हैं दिशाएँ बुलातीं
नहीं पथ-डगर आज अनजान कोई
दिशाएँ निमंत्रणमुझे दे रही हैं, दिगंतर खुला सिर्फ मेरे लिए है।
नहीं कुछ यहाँ राह जो रोक पाए
न कोई यहाँ जो मुझे टोक पाए
अजानी हवा में उड़ा जा रहा हूँ
विजय गीत मेरा गगन मस्त गाए
हृदय में कहीं कह रहा बात कोई, धरा और गगन सिर्फ तेरे लिए है।
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