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Question Numbers: 129-135
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
करूणा, विवेक और धीरज बड़े सुंदर गुण हैं। इन गुणों का विकास सोचने से नहीं, इन्हें काम में लगाने से होता है। जीवन में कष्ट कब नहीं आते हैं, किसके नहीं आते, तो तब इन गुणों को कसौटी पर कसना पड़ता है। इन्हें जीवन में उतारना पड़ता है, तब इन गुणों को हम अपना सकें तो ये हमें तारते हैं। इन गुणों को अपनाने का यह अवसर कौन उपलब्ध करवाता है? क्या हमारे मित्र, जी नहीं। ऐसे अवसर तो हमें हमारे शत्रु देते हैं। इसलिए यदि हम सब सचमुच कुछ सीखना चाहते हैं तो अपने इन शत्रुओं को अपना शिक्षक मानो, अपना गुरू मानो, सबसे अच्छा, सबसे बड़ा गुरू मानो। सत्य, प्रेम और करूणा में डूबे एक व्यक्ति के लिए धीरज एक ऐसा गुण है जो इन्हें थामता है। धीरज नहीं तो क्या तो सत्य क्या प्रेम और क्या तो करुणा, धीरज ही इन सबको शक्ति देता है। और ऐसे में शत्रु के बिना हमारा काम नहीं चलेगा। इसलिए जब वे आ जाएँ तब हमें उनके प्रति आभार प्रकट करना चाहिए। हमारे शत्रु की यह शक्ति ही हमें एक शांत, प्रशांत, स्थिरचित्त की ओर ले जाने में सहायक बन सकती है। हमने अनुभव से देखा है कि अपने निजी जीवन में भी और सार्वजनिक जीवन में भी हमारे शत्रु हमारे अपने मित्र बन जाते हैं।
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
करूणा, विवेक और धीरज बड़े सुंदर गुण हैं। इन गुणों का विकास सोचने से नहीं, इन्हें काम में लगाने से होता है। जीवन में कष्ट कब नहीं आते हैं, किसके नहीं आते, तो तब इन गुणों को कसौटी पर कसना पड़ता है। इन्हें जीवन में उतारना पड़ता है, तब इन गुणों को हम अपना सकें तो ये हमें तारते हैं। इन गुणों को अपनाने का यह अवसर कौन उपलब्ध करवाता है? क्या हमारे मित्र, जी नहीं। ऐसे अवसर तो हमें हमारे शत्रु देते हैं। इसलिए यदि हम सब सचमुच कुछ सीखना चाहते हैं तो अपने इन शत्रुओं को अपना शिक्षक मानो, अपना गुरू मानो, सबसे अच्छा, सबसे बड़ा गुरू मानो। सत्य, प्रेम और करूणा में डूबे एक व्यक्ति के लिए धीरज एक ऐसा गुण है जो इन्हें थामता है। धीरज नहीं तो क्या तो सत्य क्या प्रेम और क्या तो करुणा, धीरज ही इन सबको शक्ति देता है। और ऐसे में शत्रु के बिना हमारा काम नहीं चलेगा। इसलिए जब वे आ जाएँ तब हमें उनके प्रति आभार प्रकट करना चाहिए। हमारे शत्रु की यह शक्ति ही हमें एक शांत, प्रशांत, स्थिरचित्त की ओर ले जाने में सहायक बन सकती है। हमने अनुभव से देखा है कि अपने निजी जीवन में भी और सार्वजनिक जीवन में भी हमारे शत्रु हमारे अपने मित्र बन जाते हैं।
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