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Question Numbers: 129-135
निर्देश :- गद्यांश को पढ़कर सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए -
मातृभाषा का इस्तेमाल रीढ़ की हड्डी की तरह चलते रहना चाहिए I लिखना-पढ़ना हम एक ही बार सीखते हैं। मातृभाषा में हम कौशल पक्का हो जाए तो अन्य भाषाओं में लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो जाता है। शिक्षा के जरिये व्यक्ति आसानी से बहुभाषिक हो जाता है। किसी भी भाषा को कैसे पढ़ाते हैं- इसके लिए हमें लिखने के विज्ञान को पहले समझाना हो यहाँ दिमाग और हाथ का संयोजन/समन्वयन चाहिए I 5-6 साल की उम्र तक यह विकास ठोस नहीं होता। इसलिए लिखने में मुश्किल होती है, पर शोध यह भी कहते हैं कि बच्चे के मन में प्रिंट या अन्य माध्यम अवधारणा या समझ बनाने के लिए पढ़ने के साथ लिखना भी शुरू करना चाहिए I यह लिखना रेखाओं में भी हो सकता है। यह समझ लेना भी ज़रूरी है कि सुनना और बोलना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना समझना और अभिव्यक्त करना। गणित सिखाने की बात की जाए तो बच्चे गणित पहले से ही जानते हैं। टॉफ़ी बाँटना बिना सिखाए आ जाता है। इसी तरह से पानी के तीन रूप-ठोस, तरल और भाप, मातृभाषा के सहारे बेहतर ढंग से समझाए जा सकते हैं- पर बच्चे के मन में अवधारणा स्पष्ट होने के बाद। मातृभाषा के जरिये पारिभाषिक शब्दों का आदान-प्रदान भी हो सकता है। दूसरी-तीसरी भाषा दूसरे-तीसरे वर्षों में जुड़ जाए पर मातृभाषा का प्रयोग चलते रहना चाहिए। वे अपनी मातृभाषा के ज़रिये और भाषाओं को समझने लगते हैं। हमें तो केवल शिक्षा की नदी पर एक अच्छा मज़बूत पुल बनाना है।
निर्देश :- गद्यांश को पढ़कर सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए -
मातृभाषा का इस्तेमाल रीढ़ की हड्डी की तरह चलते रहना चाहिए I लिखना-पढ़ना हम एक ही बार सीखते हैं। मातृभाषा में हम कौशल पक्का हो जाए तो अन्य भाषाओं में लिखना-पढ़ना बहुत आसान हो जाता है। शिक्षा के जरिये व्यक्ति आसानी से बहुभाषिक हो जाता है। किसी भी भाषा को कैसे पढ़ाते हैं- इसके लिए हमें लिखने के विज्ञान को पहले समझाना हो यहाँ दिमाग और हाथ का संयोजन/समन्वयन चाहिए I 5-6 साल की उम्र तक यह विकास ठोस नहीं होता। इसलिए लिखने में मुश्किल होती है, पर शोध यह भी कहते हैं कि बच्चे के मन में प्रिंट या अन्य माध्यम अवधारणा या समझ बनाने के लिए पढ़ने के साथ लिखना भी शुरू करना चाहिए I यह लिखना रेखाओं में भी हो सकता है। यह समझ लेना भी ज़रूरी है कि सुनना और बोलना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना समझना और अभिव्यक्त करना। गणित सिखाने की बात की जाए तो बच्चे गणित पहले से ही जानते हैं। टॉफ़ी बाँटना बिना सिखाए आ जाता है। इसी तरह से पानी के तीन रूप-ठोस, तरल और भाप, मातृभाषा के सहारे बेहतर ढंग से समझाए जा सकते हैं- पर बच्चे के मन में अवधारणा स्पष्ट होने के बाद। मातृभाषा के जरिये पारिभाषिक शब्दों का आदान-प्रदान भी हो सकता है। दूसरी-तीसरी भाषा दूसरे-तीसरे वर्षों में जुड़ जाए पर मातृभाषा का प्रयोग चलते रहना चाहिए। वे अपनी मातृभाषा के ज़रिये और भाषाओं को समझने लगते हैं। हमें तो केवल शिक्षा की नदी पर एक अच्छा मज़बूत पुल बनाना है।
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