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Question Numbers: 121-128
निर्देश :- गद्यांश को पढ़कर सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए I
हमारी समझ अपनी भाषा में ही बनती है I भाषा और समझ का रिश्ता कुछ ऐसा होता है जैसे पानी और उसकी तरंगों का। भाषा के बिना समझ की परिकल्पना असंभव है। पर स्कूलों में भाषा को एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें इस दिशा में अभी काम करना होगा और यह विश्वास दिलाना होगा कि भाषा मनुष्य की समझ का आवश्यक आधार है। हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं? इसके बारे में भी हमें भाषा ही सचेत करती है। यह वर्तमान से अतीत और भविष्य में आवाजाही करने का एकमात्र ज़रूरी उपकरण है I कल क्या था? इसके आधार पर ही यह कल्पना की जा सकती है कि हमें और क्या चाहिए? अपने विषय में विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय करने का काम भाषा ही करती है। मनुष्य की ये सभी अवस्थाएँ अपने परिवेश में ही रची जाती हैं और इस रचावट का काम समझ के द्वारा ही संभव है। इंसान की यह समझ भाषा से ही बनती है। भाषा से ही हम सार्थक अवधारणाएँ बनाते हैं, संबंधों का संजाल बनाते हैं, अपने अनुभवों को सार्थकता प्रदान करते हैं, अपने इरादों को देख पाते हैं और दूसरों के इरादों को समझ पाते हैं। इसलिए इंसान को गढ़ने की आवश्यक शर्त के रूप में भाषा समझ का माध्यम बनती है I बच्चों की अपनी भाषा की संरचना उनके दिमाग में पहले से ही है। अवधारणाओं का ढाँचा इसी भाषा से बनता है I जब वे कोई नयी चीज देखते हैं तो उसका संबंध पहले के अनुभवों से जोड़ते हैं नयी विशेषताएँ पता करते हैं। तब जाकर उस चीज की अवधारणा बनती है।
निर्देश :- गद्यांश को पढ़कर सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए I
हमारी समझ अपनी भाषा में ही बनती है I भाषा और समझ का रिश्ता कुछ ऐसा होता है जैसे पानी और उसकी तरंगों का। भाषा के बिना समझ की परिकल्पना असंभव है। पर स्कूलों में भाषा को एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें इस दिशा में अभी काम करना होगा और यह विश्वास दिलाना होगा कि भाषा मनुष्य की समझ का आवश्यक आधार है। हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं? इसके बारे में भी हमें भाषा ही सचेत करती है। यह वर्तमान से अतीत और भविष्य में आवाजाही करने का एकमात्र ज़रूरी उपकरण है I कल क्या था? इसके आधार पर ही यह कल्पना की जा सकती है कि हमें और क्या चाहिए? अपने विषय में विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय करने का काम भाषा ही करती है। मनुष्य की ये सभी अवस्थाएँ अपने परिवेश में ही रची जाती हैं और इस रचावट का काम समझ के द्वारा ही संभव है। इंसान की यह समझ भाषा से ही बनती है। भाषा से ही हम सार्थक अवधारणाएँ बनाते हैं, संबंधों का संजाल बनाते हैं, अपने अनुभवों को सार्थकता प्रदान करते हैं, अपने इरादों को देख पाते हैं और दूसरों के इरादों को समझ पाते हैं। इसलिए इंसान को गढ़ने की आवश्यक शर्त के रूप में भाषा समझ का माध्यम बनती है I बच्चों की अपनी भाषा की संरचना उनके दिमाग में पहले से ही है। अवधारणाओं का ढाँचा इसी भाषा से बनता है I जब वे कोई नयी चीज देखते हैं तो उसका संबंध पहले के अनुभवों से जोड़ते हैं नयी विशेषताएँ पता करते हैं। तब जाकर उस चीज की अवधारणा बनती है।
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Question : 123
Total: 150
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