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Question Numbers: 129-135
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
स्वावलंबन के अनेक लाभ हैं। स्वावलंबी मनुष्य में अनेक गुण स्वतः ही आ जाते हैं, जैसे - आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, दृढ़ संकल्प, साहस, धैर्य तथा आत्मबल। स्वावलंबी मनुष्य कभी निराशा के गर्त में नहीं गिरता, अपितु सदैव आशावान बना रहता है। वह अपने भाग्य का अपने हाथों से निर्माण करता हुआ कहता है- 'अपना हाथ जगन्नाथ'। आत्मनिर्भरता से कायरता, भय, संशय, आलस्य तथा चिंता दूर हो जाती है। इससे व्यक्ति अनेक कष्टों एवं बाधाओं को पद-दलित करता हुआ कंटकाकीर्ण मार्ग पर निर्भरतापूर्वक आगे बढ़ता जाता है। वह भली-भाँति समझ लेता है कि वह मनुष्य है तथा उसमें ईश्वर ने अनेक गुणों की सृष्टि की है। अतः निराश होना उसका धर्म नहीं। उसे यह भली-भाँति समझना चाहिए कि निराशा के क्षणों में भी उसे आत्मविश्वास एवं आत्मबल का त्याग नहीं करना चाहिए।
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स्वावलंबन के अनेक लाभ हैं। स्वावलंबी मनुष्य में अनेक गुण स्वतः ही आ जाते हैं, जैसे - आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, दृढ़ संकल्प, साहस, धैर्य तथा आत्मबल। स्वावलंबी मनुष्य कभी निराशा के गर्त में नहीं गिरता, अपितु सदैव आशावान बना रहता है। वह अपने भाग्य का अपने हाथों से निर्माण करता हुआ कहता है- 'अपना हाथ जगन्नाथ'। आत्मनिर्भरता से कायरता, भय, संशय, आलस्य तथा चिंता दूर हो जाती है। इससे व्यक्ति अनेक कष्टों एवं बाधाओं को पद-दलित करता हुआ कंटकाकीर्ण मार्ग पर निर्भरतापूर्वक आगे बढ़ता जाता है। वह भली-भाँति समझ लेता है कि वह मनुष्य है तथा उसमें ईश्वर ने अनेक गुणों की सृष्टि की है। अतः निराश होना उसका धर्म नहीं। उसे यह भली-भाँति समझना चाहिए कि निराशा के क्षणों में भी उसे आत्मविश्वास एवं आत्मबल का त्याग नहीं करना चाहिए।
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