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Question Numbers: 121-128
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्न के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
भाषा का प्रवाह प्रधानतया नदी के जैसा है। उसके प्रवाह पर हम असर ज़रूर डाल सकते हैं, लेकिन नदी की केवल नहर नहीं बना सकते। राष्ट्र भाषा का संगठन करने के पहले भाषा की दृष्टि से इस देश के इतिहास को देखना चाहिए। उस इतिहास को कोई इनकार नहीं कर सकता। भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों का ख्याल करने वाले जो त्रिकालज्ञ समाजशास्त्री हों, वे ही राष्ट्र भाषा का निर्णय और निर्माण कर सकेंगे। हमारे देश में प्रान्त प्रान्त में भिन्न-भिन्न बोलियाँ अलग-अलग चलती आई हैं। सारे देश में एक ही भाषा कभी थी, इसका सबूत हमारे पास नहीं। इन सब प्रान्तीय भाषाओं को 'कुदरती', 'स्वाभाविक' अपना 'प्राकृत' कहते थे। इन प्राकृत भाषाओं के जो निजी शब्द थे उनके लिए हमारे पुरखों की संज्ञा थी- 'देश्य'।
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्न के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
भाषा का प्रवाह प्रधानतया नदी के जैसा है। उसके प्रवाह पर हम असर ज़रूर डाल सकते हैं, लेकिन नदी की केवल नहर नहीं बना सकते। राष्ट्र भाषा का संगठन करने के पहले भाषा की दृष्टि से इस देश के इतिहास को देखना चाहिए। उस इतिहास को कोई इनकार नहीं कर सकता। भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों का ख्याल करने वाले जो त्रिकालज्ञ समाजशास्त्री हों, वे ही राष्ट्र भाषा का निर्णय और निर्माण कर सकेंगे। हमारे देश में प्रान्त प्रान्त में भिन्न-भिन्न बोलियाँ अलग-अलग चलती आई हैं। सारे देश में एक ही भाषा कभी थी, इसका सबूत हमारे पास नहीं। इन सब प्रान्तीय भाषाओं को 'कुदरती', 'स्वाभाविक' अपना 'प्राकृत' कहते थे। इन प्राकृत भाषाओं के जो निजी शब्द थे उनके लिए हमारे पुरखों की संज्ञा थी- 'देश्य'।
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Question : 121
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