नागपुर के भोंसले वंश के शासक रघुजी के दक्षिण भारत अभियान के दौरान उनके सेनापति भास्कर पंत ने दक्षिण कोसल पर कब्जा जमाने का प्रयास प्रारंभ किया। 1741−42 में रतनपुर के क्षेत्र में उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। इस समय रतनपुर में रघुनाथ सिंह का शासन था। 1750 में मोहन सिह की मृत्यु के बाद रघुजी भोंसले के पुत्र बिम्बाजी भोंसले ने अपना प्रत्यक्ष शासन रतनपुर में स्थापित किया। 1750 में रायपुर की कलचुरी शाखा के शासक अमरसिंह को अपदस्थ कर 1757 तक समूचे छत्तीसगढ़ में बिम्बाजी भोंसले ने अपना शासन स्थापित कर लिया। बिम्बाजी (1758-87 ई.) को छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वतंत्र मराठा शासक माना जाता है। छत्तीसगढ़ में मराठा प्रशासन का स्वरूप- 1. भोंसला बिम्बाजी के काल में शासन व्यवस्था हैहयकालीन शासन व्यवस्था के अनुरूप ही चलती रही, परन्तु राजकुमार व्यंकोजी ने यहाँ का शासन प्रतिनिधि शासक सूबेदारों के माध्यम से चलाना आरंभ किया, जिसे सूबा शासन की संज्ञा दी गई। प्रथम सूबेदार महिपत राव थे। 2. सम्पूर्ण प्रशासन को दो भागों में विभाजित किया गया। प्रथम प्रत्यक्ष शासन वाले खालसा क्षेत्र, द्वितीय जमींदारी। मराठों द्वारा निर्धारित राशि जो जमींदारी टैक्स अथवा टकोली के नाम से जाना जाता था। 3. मराठों ने यहाँ भू-राजस्व की तालुकदारी व्यवस्था लागू की, जिसके अनुसार, किसी क्षेत्र विशेष के भूमि संबंधी पट्टे एक निश्चित अवधि के लिए तालुकदार को ठेके पर देना।