लगभग 6 वीं शताब्दी के आसपास मध्य भारत में कलचुरियों का अभ्युदय, हुआ। कलचुरियों ने आरंभ में माहिष्मती (महेश्वर, जिला खरगौन, मध्य प्रदेश) को सत्ता का केन्द्र बनाया एवं कालातंर में कलचुरियों की शाखा जबलपुर के समीप त्रिपुरी नामक क्षेत्र में कोकल्ल द्वारा स्थापित की गई। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रादुर्भाव 9वीं सदी में हुआ, प्रारंभ में इनका केन्द्र रतनपुर था, परन्तु बाद में रायपुर एक नवीन केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। मराठों के आगमन के पूर्व तक लगभग सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में कलचुरियों का प्रभुत्व बना रहा। 14 वीं सदी में रतनपुर के कलचुरी वंश की शाखा (लहुरी शाखा ) रायपुर में स्थापित हुई। रायपुर शाखा का संस्थापक संभवत: केशवदेव नामक राजा माना जाता है। इस वंश के राजा रामचन्द्र ने रायपुर शहर की स्थापना की, उनके पुत्र ब्रह्मदेव राय के नाम पर इसका नाम- करण हुआ। इस वंश के अंतिम शासक अमरसिंह ने रायपुर पर 1750 ई. तक (मराठों के आगमन तक) शासन किया।