UPSSSC PET 15 Oct 2022 Shift 1 Paper
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Question Numbers: 42-46
निम्नलिखित अनुच्छेद को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
ज्ञान राशि के संचित कोश को ही साहित्य कहा जाता है। साहित्य जहाँ समाज को प्रभावित करता है, वहीं वह समाज से प्रभावित भी होता है। व्यक्ति समाज और साहित्य दोनों की रचना करता है। साहित्य से ही हमें अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती है । प्रत्येक युग का साहित्य अपने युग के प्रगतिशील विचारों द्वारा किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित होता है । साहित्य हमारी कौतूहल एवं जिज्ञासा वृत्तियों और ज्ञान की पिपासा को तृप्त करता है। साहित्य से ही किसी राष्ट्र का इतिहास, गरिमा, संस्कृति और सभ्यता, वहाँ के पूर्वजों के विचारों एवं अनुसंधानो, प्राचीन रीति-रिवाजों, रहन-सहन और परंपराओं आदि की जानकारी प्राप्त होती है । किस काल में देश के किस भाग में कौन सी भाषा बोली जाती थी, उस समय की वेशभूषा क्या थी, रहन-सहन कैसा था, सामाजिक और धार्मिक विचार कैसे थे, यह सब कुछ उस समय के साहित्य अध्ययन से ज्ञात होता है।
साहित्य समाज का दर्पण है- इससे अभिप्राय यही है कि साहित्य समाज का न केवल चित्र प्रस्तुत करता है, अपितु समाज के प्रति वह अपना दायित्व निर्वाह भी करता है। समाज में फैली अनैतिकता, अराजकता, निरंकुशता जैसे अवांछनीय तत्त्वों के दुष्प्रभावों को साहित्य बड़े ही मर्मस्पर्शी रूप में हमारे समक्ष लाता है। हिंदी साहित्य की आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक रचित प्रायः सभी रचनाओं द्वारा तत्कालीन समाज की परिस्थिति, विचार व कार्य व्यापार की पूरी जानकारी प्राप्त होती है। यह भी सही है कि यदि साहित्य वास्तव में केवल समाज का दर्पण होता, तो कवि या साहित्यकार समाज की विसंगतियों या विडंबनाओं पर प्रहार नहीं करता और उसे अपेक्षित दिशा बोध देने के लिए भी प्रयत्नशील नहीं रहता। समाज के प्रति साहित्यकार का दायित्व आशा का संचार करना, उत्साह व कर्तव्यबोध को दिशा देना आदि है । प्राचीन काल से लेकर आज तक के साहित्यकारों की यही गौरवशाली परंपरा रही है कि समाज की रूपरेखा को कल्याणकारी व सुखद मार्ग द्वारा प्रस्तुत करने से सत्साहित्य का रचनाकार कभी पीछे नहीं हटता है । साहित्य में वह शक्ति है जो तोप तथा तलवारों में भी नहीं होती ।
निम्नलिखित अनुच्छेद को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
ज्ञान राशि के संचित कोश को ही साहित्य कहा जाता है। साहित्य जहाँ समाज को प्रभावित करता है, वहीं वह समाज से प्रभावित भी होता है। व्यक्ति समाज और साहित्य दोनों की रचना करता है। साहित्य से ही हमें अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती है । प्रत्येक युग का साहित्य अपने युग के प्रगतिशील विचारों द्वारा किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित होता है । साहित्य हमारी कौतूहल एवं जिज्ञासा वृत्तियों और ज्ञान की पिपासा को तृप्त करता है। साहित्य से ही किसी राष्ट्र का इतिहास, गरिमा, संस्कृति और सभ्यता, वहाँ के पूर्वजों के विचारों एवं अनुसंधानो, प्राचीन रीति-रिवाजों, रहन-सहन और परंपराओं आदि की जानकारी प्राप्त होती है । किस काल में देश के किस भाग में कौन सी भाषा बोली जाती थी, उस समय की वेशभूषा क्या थी, रहन-सहन कैसा था, सामाजिक और धार्मिक विचार कैसे थे, यह सब कुछ उस समय के साहित्य अध्ययन से ज्ञात होता है।
साहित्य समाज का दर्पण है- इससे अभिप्राय यही है कि साहित्य समाज का न केवल चित्र प्रस्तुत करता है, अपितु समाज के प्रति वह अपना दायित्व निर्वाह भी करता है। समाज में फैली अनैतिकता, अराजकता, निरंकुशता जैसे अवांछनीय तत्त्वों के दुष्प्रभावों को साहित्य बड़े ही मर्मस्पर्शी रूप में हमारे समक्ष लाता है। हिंदी साहित्य की आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक रचित प्रायः सभी रचनाओं द्वारा तत्कालीन समाज की परिस्थिति, विचार व कार्य व्यापार की पूरी जानकारी प्राप्त होती है। यह भी सही है कि यदि साहित्य वास्तव में केवल समाज का दर्पण होता, तो कवि या साहित्यकार समाज की विसंगतियों या विडंबनाओं पर प्रहार नहीं करता और उसे अपेक्षित दिशा बोध देने के लिए भी प्रयत्नशील नहीं रहता। समाज के प्रति साहित्यकार का दायित्व आशा का संचार करना, उत्साह व कर्तव्यबोध को दिशा देना आदि है । प्राचीन काल से लेकर आज तक के साहित्यकारों की यही गौरवशाली परंपरा रही है कि समाज की रूपरेखा को कल्याणकारी व सुखद मार्ग द्वारा प्रस्तुत करने से सत्साहित्य का रचनाकार कभी पीछे नहीं हटता है । साहित्य में वह शक्ति है जो तोप तथा तलवारों में भी नहीं होती ।
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