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Question Numbers: 121-128
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए।
जिन्दा आदमी नंगा भी रह सकता है, परन्तु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी कंकना ही क्यों न बिक जाए।
भगवान परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए तरबूजे दे दिए, लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी चवन्नी भी कौन उधार देता। बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूजे डलिया में समेटकर बाज़ार की ओर चली और भी क्या था? बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परन्तु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फ़फ़क फ़फ़क कर रो रही थी।
कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली है, हाय! रे पत्थर दिल! उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बेठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र शोक से द्रवित हो उठे थे।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए।
जिन्दा आदमी नंगा भी रह सकता है, परन्तु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी कंकना ही क्यों न बिक जाए।
भगवान परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए तरबूजे दे दिए, लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी चवन्नी भी कौन उधार देता। बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूजे डलिया में समेटकर बाज़ार की ओर चली और भी क्या था? बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परन्तु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फ़फ़क फ़फ़क कर रो रही थी।
कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली है, हाय! रे पत्थर दिल! उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बेठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र शोक से द्रवित हो उठे थे।
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