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Question Numbers: 121-128
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
उस धन को व्यर्थ समझा जाए जिसे सहेज-सहेज कर दशकों तक संचित किया गया और अंत में वह न तो अपने और न ही परिजनों के काम आ सका क्योंकि उसकी अब उतनी आवश्यकता न रही। धन की भाँति जिस ज्ञान, विद्या, कौशल या विचार को इनके किरदारों ने सीलबंद कर दिया, उसका लोप हो जाना भी निश्चित है। उसके पल्लवित होने, विस्तार पाने और निखरने के आसार ख़त्म कर दिए गए। नैतिक दृष्टि से ऐसे किरदारों को अपराधी या मानवता विरोधी कहना अनुचित ना होगा क्योंकि प्रकृति के दिए गुणों का लाभ ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँचाया गया। सही ज्ञान वही है जिसका उपयोग समाज के हित में किया जा सके। सेवानिवृत्ति या कारोबार को तिलांजलि देने के बाद बिस्तर पकड़ लेने वाले आराम परस्त व्यक्ति नीरस, उत्साहविहीन, मशीनी जीवन बिताने को अभिशप्त इसलिए होते हैं, क्योंकि वह बाँटने के लायक ज्ञान, अनुभव और हुनर स्वयं तक सीमित रखते हैं। यह प्राकृतिक विधान के प्रतिकूल है और इसका मूल्य चुकाना पड़ता है। ऐसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को गुमसुमी या हताशा बड़ी आसानी से लील सकती है। समाज से सायास दूरी बनाने का अर्थ है - अलग-थलग पड़कर मन से बीमार होना।
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
उस धन को व्यर्थ समझा जाए जिसे सहेज-सहेज कर दशकों तक संचित किया गया और अंत में वह न तो अपने और न ही परिजनों के काम आ सका क्योंकि उसकी अब उतनी आवश्यकता न रही। धन की भाँति जिस ज्ञान, विद्या, कौशल या विचार को इनके किरदारों ने सीलबंद कर दिया, उसका लोप हो जाना भी निश्चित है। उसके पल्लवित होने, विस्तार पाने और निखरने के आसार ख़त्म कर दिए गए। नैतिक दृष्टि से ऐसे किरदारों को अपराधी या मानवता विरोधी कहना अनुचित ना होगा क्योंकि प्रकृति के दिए गुणों का लाभ ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँचाया गया। सही ज्ञान वही है जिसका उपयोग समाज के हित में किया जा सके। सेवानिवृत्ति या कारोबार को तिलांजलि देने के बाद बिस्तर पकड़ लेने वाले आराम परस्त व्यक्ति नीरस, उत्साहविहीन, मशीनी जीवन बिताने को अभिशप्त इसलिए होते हैं, क्योंकि वह बाँटने के लायक ज्ञान, अनुभव और हुनर स्वयं तक सीमित रखते हैं। यह प्राकृतिक विधान के प्रतिकूल है और इसका मूल्य चुकाना पड़ता है। ऐसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को गुमसुमी या हताशा बड़ी आसानी से लील सकती है। समाज से सायास दूरी बनाने का अर्थ है - अलग-थलग पड़कर मन से बीमार होना।
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