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हवा चले अनुकूल तो नावें नौसिखिए भी खे लेते हैं,
सहज डगर पर लँगड़े भी चल बैसाखी से लेते हैं।
मिट जाते जो दीप स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को नमन उन्हें है,
जो लौटा लाते हैं गई बहारों को।
फैलाकर के हाथ किसी के सम्मुख झुकना आसाँ है,
बहती नदिया से पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है,
नित्य खोदकर नए कुएँ जो सबकी प्यास बुझाते हैं,
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
निर्देश (प्र.सं. 145 से 150) :
नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर प्रशनों के सही/सबसे जप्यक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए। हवा चले अनुकूल तो नावें नौसिखिए भी खे लेते हैं,
सहज डगर पर लँगड़े भी चल बैसाखी से लेते हैं।
मिट जाते जो दीप स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को नमन उन्हें है,
जो लौटा लाते हैं गई बहारों को।
फैलाकर के हाथ किसी के सम्मुख झुकना आसाँ है,
बहती नदिया से पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है,
नित्य खोदकर नए कुएँ जो सबकी प्यास बुझाते हैं,
वही लोग हैं जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं।
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