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निर्देश : नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर, सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए
हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हुई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सिर उठाकर खड़े हो गए हैं। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुशिकल से पहुँचता है। सूरज की रोशनीए चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है । एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारों ओर से घेरे हुए है । जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण होता है । घर की चारदीवारी में बंद दुल्हन की तरह यह भयभीत रहती है । बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है : एक इंच आगे बढ़ी कि घूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है : दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझा जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नहीं बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते हैं कि स्वराज मिलने पर उन्हें संपूर्ण मुनष्य के अधिकार हासिल होंगे।
भाषा-II : हिन्दी
निर्देश : नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर, सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए
हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हुई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सिर उठाकर खड़े हो गए हैं। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुशिकल से पहुँचता है। सूरज की रोशनीए चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है । एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारों ओर से घेरे हुए है । जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण होता है । घर की चारदीवारी में बंद दुल्हन की तरह यह भयभीत रहती है । बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है : एक इंच आगे बढ़ी कि घूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है : दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझा जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नहीं बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते हैं कि स्वराज मिलने पर उन्हें संपूर्ण मुनष्य के अधिकार हासिल होंगे।
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