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Question Numbers: 37-39
अपठित गद्यांश - दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए - सही विकल्प चुनिए।
सुधार जिस अवस्था में हो, उससे अच्छी अवस्था आने की प्रेरणा हर आदमी में मौजूद रहती है, हम में जो कमजोरियाँ हैं, वह मर्ज की तरह हमसे चिपटी हुई हैं, जैसे शारीरिक स्वास्थ्य एक प्राकृतिक बात है और रोग उसका उलट, उसी तरह नैतिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्राकृतिक बात है और हम मानसिक तथा नैतिक गिरावट से उसी तरह संतुष्ट नहीं रहते जैसे कोई रोगी अपने रोग से संतुष्ट नहीं रहता, उसी तरह हम भी इस फिक्र में रहते हैं कि कमजोरियों को दूर कर अधिक अच्छे मनुष्य बनें, इसलिए हम साधु संतों की खोज में रहते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और साहित्य का अध्ययन करते हैं। हमारी सारी कमजोरियों की जिम्मेदारी हमारी कुरुचि और प्रेम भाव से वंचित होने पर है, जहाँ सच्चा सौंदर्य-प्रेम है - वहाँ कमजोरियाँ कहाँ रह सकती है? प्रेम ही तो आध्यात्मिक भोजन है और सारी कमजोरियाँ इसके न मिलने और दूषित भोजन के मिलने से पैदा होती हैं, कलाकार हम में सौन्दर्य की अनुभूति उत्पन्न करता है और प्रेम की उष्णता, उसका एक वाक्य - हमारे अंतर जा बैठता है कि हमारा अंतकरण प्रकाशित हो जाता है, पर जब तक कलाकार खुद और - उसकी आत्मा स्वयं इस ज्योति से प्रकाशित न हो, वह हमें प्रकाश क्यों दे सकता है?
अपठित गद्यांश - दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए - सही विकल्प चुनिए।
सुधार जिस अवस्था में हो, उससे अच्छी अवस्था आने की प्रेरणा हर आदमी में मौजूद रहती है, हम में जो कमजोरियाँ हैं, वह मर्ज की तरह हमसे चिपटी हुई हैं, जैसे शारीरिक स्वास्थ्य एक प्राकृतिक बात है और रोग उसका उलट, उसी तरह नैतिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्राकृतिक बात है और हम मानसिक तथा नैतिक गिरावट से उसी तरह संतुष्ट नहीं रहते जैसे कोई रोगी अपने रोग से संतुष्ट नहीं रहता, उसी तरह हम भी इस फिक्र में रहते हैं कि कमजोरियों को दूर कर अधिक अच्छे मनुष्य बनें, इसलिए हम साधु संतों की खोज में रहते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और साहित्य का अध्ययन करते हैं। हमारी सारी कमजोरियों की जिम्मेदारी हमारी कुरुचि और प्रेम भाव से वंचित होने पर है, जहाँ सच्चा सौंदर्य-प्रेम है - वहाँ कमजोरियाँ कहाँ रह सकती है? प्रेम ही तो आध्यात्मिक भोजन है और सारी कमजोरियाँ इसके न मिलने और दूषित भोजन के मिलने से पैदा होती हैं, कलाकार हम में सौन्दर्य की अनुभूति उत्पन्न करता है और प्रेम की उष्णता, उसका एक वाक्य - हमारे अंतर जा बैठता है कि हमारा अंतकरण प्रकाशित हो जाता है, पर जब तक कलाकार खुद और - उसकी आत्मा स्वयं इस ज्योति से प्रकाशित न हो, वह हमें प्रकाश क्यों दे सकता है?
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