व्यक्तिगत विभिन्नता (Individual difference) प्रकृति का स्वाभाविक गुण व देन है। सामान्यतः सभी व्यक्ति समान दिखाई देते हैं किन्तु सूक्ष्म रूप से देखने पर ज्ञात होता है कि उनमें परस्पर अन्तर आवश्यक है। एक ही माता-पिता की संतानें भी शारीरिक बनावट, मानसिक योग्यताओं तथा व्यक्तित्व के गुणों आदि में समान नहीं दिखाई देतीं। व्यक्तिगत विभिन्नता का मुख्य कारण वंशानुक्रम व वातावरण है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेषतायें होतीं है जो उसे दूसरे व्यक्ति से अलग करती हैं। वंशानुक्रम का अध्ययन करते समय, 19 वीं शताब्दी में सर फ्रांसिस गाल्टन का ध्यान वंशानुक्रम की ओर गया। 20वीं शताब्दी में, पियर्सन, कैटेंल व रिमैन आदि मनोवैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन किया। फलस्वरूप व्यक्तिगत विभिन्नता को जानकर, शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षा की योजना, उपयुक्त उपयोगी शिक्षा प्रणालियों व सिद्धान्तों का निर्माण किया। स्किनर ने कहा- "बालक की प्रत्येक सम्भावना के विकास का एक विशिष्ट काल होता है। यह विशिष्ट काल वैयक्तिक भेद के अनुसार प्रत्येक में भिन्न-भिन्न होता है, यदि उचित समय पर इस सम्भावना को विकसित करने का प्रयत्न किया जाए तो उसके नष्ट होने का भय रहता है।" व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार: 1. वंशानुक्रमः माता-पिता व अन्य पूर्वजों से संतान को प्राप्त होने वाला गुण इन्हीं के कारण प्रत्येक मनुष्य में विभिन्नता और समानता भी दिखाई देती है। 2. पर्यावरणः मानव विकास में पर्यावरण का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है। पर्यावरण में वे सभी तत्व आते हैं जो मानव विकास व उसके सम्बन्धों को प्रभावित करती है। पर्यावरण का अर्थ व्यापक है। इसके प्रभाव से ही वैयक्तिगत विभिन्नता विकसित होती है।